बयाँ हों भी तो हों आख़िर कहाँ जो दिल की बातें हैं
न तन्हाई की बातें हैं न ये महफ़िल की बातें हैं
मुरत्तब कर लिया यूँ हम ने अफ़्साना मोहब्बत का
कुछ उन के दिल की बातें हैं कुछ अपने दिल की बातें हैं
जो उन में फँस गया फिर राह पर वो आ नहीं सकता
बड़े चक्कर की बातें रहबर-ए-मंज़िल की बातें हैं
तुम्हारा वा'ज़ राज़-ए-इश्क़ क्या खोलेगा ऐ वाइ'ज़
ज़बाँ की ये नहीं हज़रत ये चश्म-ओ-दिल की बातें हैं
वो महफ़िल से जुदा भी हो चुके महफ़िल को गरमा कर
मगर महफ़िल में अब तक गर्मी-ए-महफ़िल की बातें हैं
ज़बाँ से कुछ कहो साहब मगर मा'लूम है हम को
तुम्हारे दिल की सब बातें हमारे दिल की बातें हैं
मुझे दरस-ए-सुकूँ देते हैं वो जोश-ए-तमन्ना में
उधर तूफ़ाँ की ख़्वाहिश है इधर साहिल की बातें हैं
मैं अपने हाल-ओ-माज़ी पर भी कुछ ऐ 'अर्श' रो लेता
मगर पेश-ए-नज़र इस वक़्त मुस्तक़बिल की बातें हैं
ग़ज़ल
बयाँ हों भी तो हों आख़िर कहाँ जो दिल की बातें हैं
अर्श मलसियानी