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बयाँ अपनी हक़ीक़त कर रहा हूँ | शाही शायरी
bayan apni haqiqat kar raha hun

ग़ज़ल

बयाँ अपनी हक़ीक़त कर रहा हूँ

अब्बास ताबिश

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बयाँ अपनी हक़ीक़त कर रहा हूँ
वो कहते हैं शिकायत कर रहा हूँ

कभी उन से कही थी बात कोई
मगर अब तक वज़ाहत कर रहा हूँ

बिला मक़्सद नहीं ये देखना भी
किसी को ख़ूबसूरत कर रहा हूँ