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बस्ती तमाम ख़्वाब की वीरान हो गई | शाही शायरी
basti tamam KHwab ki viran ho gai

ग़ज़ल

बस्ती तमाम ख़्वाब की वीरान हो गई

अफ़ीफ़ सिराज

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बस्ती तमाम ख़्वाब की वीरान हो गई
यूँ ख़त्म शब हुई सहर आसान हो गई

बे-फ़िक्र हो गया हूँ दिल-ओ-जाँ से इस लिए
उस की निगाह-ए-नाज़ निगहबान हो गई

है मर्तबा बुलंद सितारों से ऐ फ़लक
मेरा नसीब ख़ाक-ए-खुरासान हो गई

शफ़्फ़ाफ़ था ये शीशा-ए-दिल उस के सामने
बिजली कड़क के आप ही हैरान हो गई

उलझा हुआ था इश्क़ में पहले ही ना-मुराद
नागाह रुख़ पे ज़ुल्फ़ परेशान हो गई