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बसारतों पे भँवर इंकिशाफ़ करता है | शाही शायरी
basaraton pe bhanwar inkishaf karta hai

ग़ज़ल

बसारतों पे भँवर इंकिशाफ़ करता है

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

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बसारतों पे भँवर इंकिशाफ़ करता है
कि बुलबुले का समुंदर तवाफ़ करता है

अजीब भूल-भुलय्याँ है जुस्तुजू ख़ुद की
हर एक नक़्श-ए-क़दम इंहिराफ़ करता है

मज़ा तो जब है कि हम उस को ना ख़ुदा कर लें
हवा का रुख़ जो हमारे ख़िलाफ़ करता है

जिसे गुनाह की तौफ़ीक़ ही न हो ता-उम्र
उसे ख़ुदा न ज़माना मुआ'फ़ करता है

लहू की मार से बचिए कि जोश में आए
तो क़तरा क़तरा बदन में शिगाफ़ करता है

बला से रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल मिरी ग़ज़ल में नहीं
नुकीला लहजा घुटन को तो साफ़ करता है