बस वही वो दिखाई देते हैं
एक के दो दिखाई देते हैं
जितने हरजाई हम ने देखे हैं
उतने किस को दिखाई देते हैं
वो यहाँ हैं नहीं पता है हमें
फिर भी हम को दिखाई देते हैं
दिल को बहलाना ही तो मक़्सद है
फ़र्ज़ कर लो दिखाई देते हैं
जैसे हम तुम को साफ़ देखते हैं
वैसे तुम को दिखाई देते हैं
ताब-ए-नज़्ज़ारा बाक़ी है कि गई
और देखो दिखाई देते हैं
जो ज़माने को देखते भी नहीं
वो उन्हीं को दिखाई देते हैं
शे'र पढ़ते हैं आप जब 'वासिफ़'
दास्ताँ-गो दिखाई देते हैं

ग़ज़ल
बस वही वो दिखाई देते हैं
वासिफ़ यार