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बस सलीक़े से ज़रा बर्बाद होना है तुम्हें | शाही शायरी
bas saliqe se zara barbaad hona hai tumhein

ग़ज़ल

बस सलीक़े से ज़रा बर्बाद होना है तुम्हें

शहराम सर्मदी

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बस सलीक़े से ज़रा बर्बाद होना है तुम्हें
इस ख़राबे में अगर आबाद होना है तुम्हें

आश्ना तहज़ीब-ए-ख़ामोशी से होना शर्त है
दोस्तो गर वाक़ई फ़रियाद होना है तुम्हें

वस्ल की साअत तुम्हारे क़ुर्ब से मुझ पर खुला
इक न इक दिन हिज्र की मीआद होना है तुम्हें

इश्क़ करते वक़्त मेरे ज़ेहन में हरगिज़ न था
शाएरी में इस तरह ईजाद होना है तुम्हें

मैं ख़ुदा के फ़ैसले से ख़ुश हूँ ये भी लुत्फ़ है
मेरी ना-तामीर की बुनियाद होना है तुम्हें