बस हो चुका हुज़ूर ये पर्दे हटाइए
सब मुंतज़िर हैं सामने तशरीफ़ लाइए
आवाज़ में तो आप की बे-शक ख़ुलूस है
लेकिन ज़रा नक़ाब तो रुख़ से हटाइए
हम मानते हैं आप बड़े ग़म-गुसार हैं
लेकिन ये आस्तीन में क्या है दिखाइए
अब क़ाफ़िले के लोग भी मंज़िल-शनास हैं
आख़िर कहाँ का क़स्द है खुल कर बताइए
बादा-कशों की अस्ल जगह मय-कदे में है
किस ने कहा कि आप भी मिम्बर पे आइए
ग़ज़ल
बस हो चुका हुज़ूर ये पर्दे हटाइए
इक़बाल अज़ीम