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बस एक भूल की भरपाइयों से लड़ता रहा | शाही शायरी
bas ek bhul ki bharpaiyon se laDta raha

ग़ज़ल

बस एक भूल की भरपाइयों से लड़ता रहा

मैराज नक़वी

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बस एक भूल की भरपाइयों से लड़ता रहा
तमाम उम्र मैं रुस्वाइयों से लड़ता रहा

तमाम उम्र उजालों के मिस्ल मेरा उरूज
मिरे ज़वाल की गहराइयों से लड़ता रहा

मिरे वजूद पे ग़ालिब था रात एक बदन
तमाम रात मैं अंगड़ाइयों से लड़ता रहा

हिसार-ए-शब में वो तन्हा किसी मुजाहिद सा
कोई बदन था जो परछाइयों से लड़ता रहा

हसीन यादों की इक अंजुमन सजाता रहा
मैं तेरे बा'द यूँ तन्हाइयों से लड़ता रहा