बस एक बात की उस को ख़बर ज़रूरी है
कि वो हमारे लिए किस क़दर ज़रूरी है
दिलों में दर्द की दौलत बचा बचा के रखो
ये वो मताअ' है जो उम्र भर ज़रूरी है
नहीं ज़रूर कि मक़्दूर हो तो साथ रखें
कभी-कभार मगर नौहागर ज़रूरी है
कभी तो खेल परिंदे भी हार जाते हैं
हवा कहीं की भी हो मुस्तक़र ज़रूरी है
ये क्या ज़रूर कि मस्त अपने आप ही में रहें
इधर उधर की भी कुछ कुछ ख़बर ज़रूरी है
मफ़र नहीं ग़म-ए-दुनिया से 'आफ़्ताब-हुसैन'
बहुत कठिन है ये मंज़िल मगर ज़रूरी है
ग़ज़ल
बस एक बात की उस को ख़बर ज़रूरी है
आफ़ताब हुसैन