बस दिखा दे राह-ए-मय-ख़ाना कोई
ले चले या सू-ए-वीराना कोई
क्या मिला फ़र्ज़ानों में रह कर मुझे
उन से तो बेहतर है दीवाना कोई
रह-गुज़ार-ए-शौक़ का है ये करम
हो गया अपना ही बेगाना कोई
आज के हालात पर लिक्खूँ तो क्या
गर लिखूँ समझोगे अफ़्साना कोई
मैं हूँ और तन्हाइयों का दश्त है
दर्द को मेरे नहीं जाना कोई
मैं ने भी सीखा है दुनिया से बहुत
सीखे मुझ से भी तो ग़म खाना कोई
कहते हैं 'साहिल' से अक्सर मेहरबाँ
है ग़ज़ल या हर्फ़-ए-रिंदाना कोई
ग़ज़ल
बस दिखा दे राह-ए-मय-ख़ाना कोई
अशोक साहनी साहिल