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बस अपने ख़्वाब से ता'बीर का सामान लेते हैं | शाही शायरी
bas apne KHwab se tabir ka saman lete hain

ग़ज़ल

बस अपने ख़्वाब से ता'बीर का सामान लेते हैं

मेहदी जाफ़र

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बस अपने ख़्वाब से ता'बीर का सामान लेते हैं
वो सब अंजान हैं कहते जो हैं हम जान लेते हैं

यही कह दे तिरी गलियों की हम ने ख़ाक छानी है
तिरे दफ़्तर से वो ऐवान के दीवान लेते हैं

हवा की मौज में रह रह के आहट तेरी मिलती है
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

अँधेरी रात से महफ़ूज़ रहना हम ने सीखा है
टिकी है कहकशाँ जिस में वो चादर तान लेते हैं

कहीं ऐसा न हो हम छोड़ दें इंसान का क़ालिब
न देना ऐ ख़ुदा वो रिज़्क़ जो हैवान लेते हैं