बरसों पुराने ज़ख़्म को बे-कार कर दिया
हम ने तिरा जवाब भी तय्यार कर दिया
तौक़-ए-बदन उतार के फेंका ज़मीं से दूर
दुनिया के साथ चलने से इंकार कर दिया
ख़ुद ही दिखाए ख़्वाब भी तौसी-ए-शहर के
जंगल को ख़ुद ही चीख़ के हुशियार कर दिया
जम्हूरियत के बीच फँसी अक़्लियत था दिल
मौक़ा जिसे जिधर से मिला वार कर दिया
आए थे कुछ सितारे तिरी रौशनी के साथ
हम अपने ही नशे में थे इंकार कर दिया
वो नींद थी कि मौत मुझे कुछ पता नहीं
गहरे घने सुकूत ने बेदार कर दिया
हम आईने के सामने आए तो रो पड़े
उस ने सजा-सँवार के बे-कार कर दिया
ग़ज़ल
बरसों पुराने ज़ख़्म को बे-कार कर दिया
नोमान शौक़