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बरसों के जैसे लम्हों में ये रात गुज़रती जाएगी | शाही शायरी
barson ke jaise lamhon mein ye raat guzarti jaegi

ग़ज़ल

बरसों के जैसे लम्हों में ये रात गुज़रती जाएगी

अफ़ीफ़ सिराज

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बरसों के जैसे लम्हों में ये रात गुज़रती जाएगी
तुम सामने आए गर दिल की धड़कन भी ठहर ही जाएगी

पर्दे में रहूँ आँखें मेरी बेताब तो हैं पर ताब नहीं
बे-ताबी-ए-दिल लम्हाती है हालत ये सँभाली जाएगी

आईना-ए-दिल शफ़्फ़ाफ़ तो हो हम को भी सँवरना लाज़िम है
हम को भी पता है मिलने पर चेहरे की बहाली जाएगी

कुछ ख़ुद में कशिश पैदा कर लो कि महफ़िल तुम से आँख भरे
ये चाल बड़े अय्यार की है ये चाल न ख़ाली जाएगी

ऐ काशिफ़-ए-सोज़-ए-हस्ती सुन है तुझ में निहाँ असरार की बू
गर तेरा गुज़र गुलशन से हुआ हर बात निकाली जाएगी