बरसों के जैसे लम्हों में ये रात गुज़रती जाएगी
तुम सामने आए गर दिल की धड़कन भी ठहर ही जाएगी
पर्दे में रहूँ आँखें मेरी बेताब तो हैं पर ताब नहीं
बे-ताबी-ए-दिल लम्हाती है हालत ये सँभाली जाएगी
आईना-ए-दिल शफ़्फ़ाफ़ तो हो हम को भी सँवरना लाज़िम है
हम को भी पता है मिलने पर चेहरे की बहाली जाएगी
कुछ ख़ुद में कशिश पैदा कर लो कि महफ़िल तुम से आँख भरे
ये चाल बड़े अय्यार की है ये चाल न ख़ाली जाएगी
ऐ काशिफ़-ए-सोज़-ए-हस्ती सुन है तुझ में निहाँ असरार की बू
गर तेरा गुज़र गुलशन से हुआ हर बात निकाली जाएगी
ग़ज़ल
बरसों के जैसे लम्हों में ये रात गुज़रती जाएगी
अफ़ीफ़ सिराज