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बरसों हुए उस से न कोई बात हुई रात | शाही शायरी
barson hue us se na koi baat hui raat

ग़ज़ल

बरसों हुए उस से न कोई बात हुई रात

सुहैल काकोरवी

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बरसों हुए उस से न कोई बात हुई रात
तू ने भी न की अपनी कोई जादूगरी रात

गुम हो गई उम्मीद-ए-मुलाक़ात सहर में
ये तू ने मिरे साथ अजब चाल चली रात

वो ले गया साथ अपने उजाले मिरे दिल के
काटे न कटी हम से जो थी दर्द-भरी रात

अश्कों से कहा मैं ने जुदाई का फ़साना
इस पर ये कहा उस ने कि आएगी नई रात

शिकवे मिरे और उस का बताना इसे इल्ज़ाम
कुछ तय न हुआ और यूँही बीत गई रात

जो मेरे तसव्वुर में था हँगामा-ए-महशर
उस के लिए मख़्सूस हुई वस्ल की ही रात

इस में ही तो है चाँद सितारों का मुक़द्दर
इक ख़ाल-ए-सियह-ताब की है जल्वागरी रात

जिस रात कभी कोई मेरे साथ रहा था
आ जाए 'सुहैल' आज दुआ है की वही रात