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बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो | शाही शायरी
barson hue tum kahin nahin ho

ग़ज़ल

बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो

ज़ेहरा निगाह

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बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो
आज ऐसा लगा यहीं कहीं हो

महसूस हुआ कि बात की है
और बात भी वो जो दिल-नशीं हो

इम्कान हुआ कि वहम था सब
इज़हार हुआ कि तुम यक़ीं हो

अंदाज़ा हुआ कि रह वही है
उम्मीद बढ़ी कि तुम वहीं हो

अब तक मिरे नाम से है निस्बत
अब तक मिरे शहर के मकीं हो