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बरपा हैं अजब शोरिशें जज़्बात के पीछे | शाही शायरी
barpa hain ajab shorishen jazbaat ke pichhe

ग़ज़ल

बरपा हैं अजब शोरिशें जज़्बात के पीछे

जुनैद हज़ीं लारी

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बरपा हैं अजब शोरिशें जज़्बात के पीछे
बे-ताब है दिल शौक़-ए-मुलाक़ात के पीछे

जिन को न समझ पाए हम अरबाब-ए-नज़र भी
सौ राज़ हैं उस शोख़ की हर बात के पीछे

इस ठोस हक़ीक़त से तार्रुज़ नहीं मुमकिन
इक सुब्ह-ए-तजल्ली है हर इक रात के पीछे

अरबाब-ए-वतन हम को ज़रा ये तो बताएँ
किन ज़ेहनों की साज़िश है फ़सादात के पीछे

मंज़र है लहू-रंग सुलगती हैं फ़ज़ाएँ
शो'लों का वो सैलाब है बरसात के पीछे

हम उन को समझते हैं 'हज़ीं' कह नहीं सकते
अस्बाब जो हैं तल्ख़ी-ए-हालात के पीछे