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बरहम हैं वो ग़ैर बे-हया से | शाही शायरी
barham hain wo ghair be-haya se

ग़ज़ल

बरहम हैं वो ग़ैर बे-हया से

नसीम देहलवी

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बरहम हैं वो ग़ैर बे-हया से
माँगें कुछ और भी ख़ुदा से

अच्छा अच्छा अदू से मिलिए
जाओ जाओ जी बला से

क्या हाल कहें दिल-ओ-जिगर का
टुकड़े टुकड़े है जा-ब-जा से

टूटे काँटे तो ज़ख़्म रोए
आँसू टपके ख़राश-ए-पा से

राहत-तलबी समझ के ऐ दिल
ऐसे बे-दर्द बे-वफ़ा से

मतलूब वही कि जिस की फ़रियाद
निकलेगा काम क्या दुआ से

रो लें आओ गले लिपट कर
फ़ुर्सत फिर हो न हो क़ज़ा से

हम तक भी कोई शमीम-ए-गेसू
इतना कह दीजियो सबा से

गुज़रे क्या जिस से जान दे दे
पूछो तो अपने मुब्तला से

देखा सब को 'नसीम' देखा
ख़ामोश बयाँ मुद्दआ' से