EN اردو
बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी | शाही शायरी
barguzida hain hawaon ke asar se hum bhi

ग़ज़ल

बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी

ज़हीर रहमती

;

बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी
देखते हैं तुझे दुनिया की नज़र से हम भी

अपने रस्ते में बड़े लोग थे रफ़्तार-शिकन
और कुछ देर में निकले ज़रा घर से हम भी

रात उस ने भी किसी लम्हे को महसूस किया
लौट आए किसी बे-वक़्त सफ़र से हम भी

सब को हैरत-ज़दा करती है यहाँ बे-ख़बरी
चौंक पड़ते थे यूँ ही पहले ख़बर से हम भी

ज़र्द चेहरे को बड़े शौक़ से सब देखते हैं
टूटने वाले हैं सरसब्ज़ शजर से हम भी

कौन सा ग़ैर ख़ुदा जाने यहाँ है ऐसा
बुर्क़ा ओढ़े हुए आए थे इधर से हम भी