बर्ग-ए-गुल शाख़-ए-हिज्र का कर दे
ऐ ख़ुदा अब मुझे हरा कर दे
हर पलक हो नम-आश्ना मुझ से
मेरा लहजा बहार सा कर दे
मुझ को रौशन मिरे बयान में कर
ख़ामुशी को भी आइना कर दे
बैठ जाऊँ न थक के मिस्ल-ए-ग़ुबार
दश्त में सूरत-ए-सबा कर दे
मेरी तकमील हर्फ़-ओ-सौत में हो
मुझे पाबंद-ए-इल्तिजा कर दे
कौन दस्तक पे कान धरता है
तू मिरे हाथ दिल-कुशा कर दे
ऐ जमाल-ए-दयार-ए-कश्फ़-ओ-कमाल
मौजा-ए-रंग को नवा कर दे
ग़ज़ल
बर्ग-ए-गुल शाख़-ए-हिज्र का कर दे
अय्यूब ख़ावर