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बर्फ़ से लड़ता था मेरे पास पानी क्यूँ नहीं | शाही शायरी
barf se laDta tha mere pas pani kyun nahin

ग़ज़ल

बर्फ़ से लड़ता था मेरे पास पानी क्यूँ नहीं

परवीन कुमार अश्क

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बर्फ़ से लड़ता था मेरे पास पानी क्यूँ नहीं
अब सवाल उठता है दरिया में रवानी क्यूँ नहीं

दास्ताँ पढ़ कर मिरी अख़बार में रोता है वो
आ के सुनता दुख मिरा मेरी ज़बानी क्यूँ नहीं

मैं तिरा बे-ख़्वाब बच्चा माँ बता मेरे लिए
कोई लोरी क्यूँ नहीं कोई कहानी क्यूँ नहीं

डूबना चाहूँगा तो ख़ुश्की में हो जाऊँगा ग़र्क़
मैं न पूछूँगा कभी दरिया में पानी क्यूँ नहीं

मेरा क़द ऊँचा है लेकिन बा-हुनर वो भी तो हैं
शहर के बोलों पे तेरी मेहरबानी क्यूँ नहीं

पास उस के पैसा बंगले गाड़ियाँ शोहरत भी है
'अश्क' जी वो शख़्स फिर भी ख़ानदानी क्यूँ नहीं