बनते खेल बिगड़ जाते हैं धीरे धीरे
सारे लोग बिछड़ जाते हैं धीरे धीरे
सपनों से मत जी बहलाओ देखो लोगो
सपने पीछे पड़ जाते हैं धीरे धीरे
ज़ब्त करो तो बेहतर है दीवानो वर्ना
आँसू ज़ोर पकड़ जाते हैं धीरे धीरे
जितना होता है 'अख़्तर' कोई किसी के पास
इतने फ़ासले बढ़ जाते हैं धीरे धीरे
ग़ज़ल
बनते खेल बिगड़ जाते हैं धीरे धीरे
अख़्तर मालिक