बनते हैं फ़रज़ाने लोग
कितने हैं दीवाने लोग
दैर ओ हरम की राह से ही
जाते हैं मय-ख़ाने लोग
देख के मुझ को गुम-सुम हैं
आए थे समझाने लोग
क्या सुनते नासेह की बात
हम ठहरे दीवाने लोग
नीची नज़र से मुझ को न देखो
घड़ लेंगे अफ़्साने लोग
दीवाना कहते हैं 'अमीर'
ख़ूब मुझे पहचाने लोग
ग़ज़ल
बनते हैं फ़रज़ाने लोग
अमीर क़ज़लबाश