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बनते हैं फ़रज़ाने लोग | शाही शायरी
bante hain farzane log

ग़ज़ल

बनते हैं फ़रज़ाने लोग

अमीर क़ज़लबाश

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बनते हैं फ़रज़ाने लोग
कितने हैं दीवाने लोग

दैर ओ हरम की राह से ही
जाते हैं मय-ख़ाने लोग

देख के मुझ को गुम-सुम हैं
आए थे समझाने लोग

क्या सुनते नासेह की बात
हम ठहरे दीवाने लोग

नीची नज़र से मुझ को न देखो
घड़ लेंगे अफ़्साने लोग

दीवाना कहते हैं 'अमीर'
ख़ूब मुझे पहचाने लोग