बना देंगी दुनिया को इक दिन शराबी
ये बद-मस्त आँखें ये डोरे गुलाबी
हैं क़स्र-ए-मोहब्बत के मेमार दोनों
निगाहों का धोका दिलों की ख़राबी
ये कुफ़्र-ए-मुजस्सम ये जुहद-ए-सरापा
ये गुंजान गेसू ये रू-ए-किताबी
हर इक शय में तुम मुस्कुराते हो गोया
हज़ारों हिजाबों में ये बे-हिजाबी
अभी तक निगाहों पे छाई हुई है
वो मस्ती में डूबी हुई नीम-ख़्वाबी
अबस इश्क़ को इंतिज़ार-ए-असर है
असर तक कहाँ आह की बारयाबी
ब-जुज़ उस के 'एहसान' को क्या समझिए
बहारों में खोया हुआ इक शराबी
ग़ज़ल
बना देंगी दुनिया को इक दिन शराबी
एहसान दानिश