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बना देंगी दुनिया को इक दिन शराबी | शाही शायरी
bana dengi duniya ko ek din sharabi

ग़ज़ल

बना देंगी दुनिया को इक दिन शराबी

एहसान दानिश

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बना देंगी दुनिया को इक दिन शराबी
ये बद-मस्त आँखें ये डोरे गुलाबी

हैं क़स्र-ए-मोहब्बत के मेमार दोनों
निगाहों का धोका दिलों की ख़राबी

ये कुफ़्र-ए-मुजस्सम ये जुहद-ए-सरापा
ये गुंजान गेसू ये रू-ए-किताबी

हर इक शय में तुम मुस्कुराते हो गोया
हज़ारों हिजाबों में ये बे-हिजाबी

अभी तक निगाहों पे छाई हुई है
वो मस्ती में डूबी हुई नीम-ख़्वाबी

अबस इश्क़ को इंतिज़ार-ए-असर है
असर तक कहाँ आह की बारयाबी

ब-जुज़ उस के 'एहसान' को क्या समझिए
बहारों में खोया हुआ इक शराबी