बना देगी ज़मीं को आज शायद आसमाँ बारिश
कि धोए जा रही हैं घर की सारी खिड़कियाँ बारिश
नए सदमात का सैलाब आया दिल की बस्ती में
निगल जाए न तेरी याद की ये कश्तियाँ बारिश
खुली जो आँख तो चेहरे पे जगमग थी फुवारों की
कि मिलने आई थी कल रात मुझ से ना-गहाँ बारिश
बदन से जब अलग करती हो तुम भीगे हुए कपड़े
छमा-छम नाचती है जंगलों के दरमियाँ बारिश
'सलीम' आँखों से सहराओं का ख़ाली-पन टपकता है
मिरे अंदर बरसती है कहीं बन कर धुआँ बारिश
ग़ज़ल
बना देगी ज़मीं को आज शायद आसमाँ बारिश
सरदार सलीम