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बना देगी ज़मीं को आज शायद आसमाँ बारिश | शाही शायरी
bana degi zamin ko aaj shayad aasman barish

ग़ज़ल

बना देगी ज़मीं को आज शायद आसमाँ बारिश

सरदार सलीम

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बना देगी ज़मीं को आज शायद आसमाँ बारिश
कि धोए जा रही हैं घर की सारी खिड़कियाँ बारिश

नए सदमात का सैलाब आया दिल की बस्ती में
निगल जाए न तेरी याद की ये कश्तियाँ बारिश

खुली जो आँख तो चेहरे पे जगमग थी फुवारों की
कि मिलने आई थी कल रात मुझ से ना-गहाँ बारिश

बदन से जब अलग करती हो तुम भीगे हुए कपड़े
छमा-छम नाचती है जंगलों के दरमियाँ बारिश

'सलीम' आँखों से सहराओं का ख़ाली-पन टपकता है
मिरे अंदर बरसती है कहीं बन कर धुआँ बारिश