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बना बना के अक्स ख़द्द-ओ-ख़ाल रख दिए गए | शाही शायरी
bana bana ke aks KHadd-o-Khaal rakh diye gae

ग़ज़ल

बना बना के अक्स ख़द्द-ओ-ख़ाल रख दिए गए

ख़ालिद महमूद ज़की

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बना बना के अक्स ख़द्द-ओ-ख़ाल रख दिए गए
कि आइने हटा दिए ख़याल रख दिए गए

जो बात क़त्ल की गई वही तो एक बात थी
सुख़न-सरा-ए-वक़्त में मलाल रख दिए गए

कोई न ख़ुद को पा सके ये और बात है मगर
कमी कजी के रंग में कमाल रख दिए गए

कभी जो एक शहर था क़फ़स बना दिया गया
जहाँ भी रक्खे जा सके थे जाल रख दिए गए

दरख़्त काट काट कर कुशादगी तो की गई
सरों पे जलती धूप के वबाल रख दिए गए

कभी जो हक़ दिया गया तो इस तरह दिया गया
कि फ़ैसले के दरमियान साल रख दिए गए

दिलों को छू गई थी जो वो ताज़गी नहीं रही
भले से अब सुख़न में सौ कमाल रख दिए गए

मोहब्बतों में चाहिए थी पुख़्तगी सो इस लिए
फ़िराक़ रख दिए गए विसाल रख दिए गए

वो शहर बे-मिसाल था वो शहर ला-ज़वाल था
फिर उस की ईंट ईंट में ज़वाल रख दिए गए