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बन के हसरत समा गया इक शख़्स | शाही शायरी
ban ke hasrat sama gaya ek shaKHs

ग़ज़ल

बन के हसरत समा गया इक शख़्स

इब्न-ए-उम्मीद

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बन के हसरत समा गया इक शख़्स
मुझ को आँसू बना गया इक शख़्स

सोच हाले पे इंतिज़ार लिखा
और रस्ते दिखा गया इक शख़्स

मेरे जीवन की डाइरी में लिखा
बाब-ए-क़िस्मत मिटा गया इक शख़्स

कर्बला में है रोज़गार-ए-अलम
काम कैसा लगा गया इक शख़्स

मैं ने उस से वफ़ा का ज़िक्र क्या
पर बुरा क्यूँ मना गया इक शख़्स

कर के जीवन से बे-नियाज़ मुझे
जीने का ढब सिखा गया इक शख़्स