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बन गई है मौत कितनी ख़ुश-अदा मेरे लिए | शाही शायरी
ban gai hai maut kitni KHush-ada mere liye

ग़ज़ल

बन गई है मौत कितनी ख़ुश-अदा मेरे लिए

सलाम मछली शहरी

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बन गई है मौत कितनी ख़ुश-अदा मेरे लिए
सर झुका कर फूल करते हैं दुआ मेरे लिए

तुम न मुरझाओ तो कलियो कल बता देना उसे
कुछ समझ कर खोई खोई है सबा मेरे लिए

मैं तो बस उन के ही रंग-ओ-नूर का अक्कास था
मुज़्तरिब है क्यूँ सितारों की ज़िया मेरे लिए

मेरी ही ख़ातिर था अहद-ए-तर्क-ए-आराइश मगर
फिर वो आए हैं कनार-ए-आइना मेरे लिए

जगमगा उठती है दिल में इक मुक़द्दस रौशनी
जब नहीं होता कहीं भी आसरा मेरे लिए

सोचता हूँ फिर उठा लूँ बरबत-ए-कोहना 'सलाम'
मुंतज़िर है शेर-ओ-नग़्मा का ख़ुदा मेरे लिए