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बन बन के बिगड़ जाएगी तदबीर कहाँ तक | शाही शायरी
ban ban ke bigaD jaegi tadbir kahan tak

ग़ज़ल

बन बन के बिगड़ जाएगी तदबीर कहाँ तक

मिर्ज़ा मायल देहलवी

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बन बन के बिगड़ जाएगी तदबीर कहाँ तक
चक्कर में रखेगी मुझे तक़दीर कहाँ तक

कुछ ग़ैर की जानिब निगह-ए-नाज़ की हद भी
खाता रहे महफ़िल में कोई तीर कहाँ तक

जाता हूँ उसे ढूँडने महफ़िल में अदू की
देखूँ तो बिगड़ती है ये तक़दीर कहाँ तक