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बलवाइयों का जिस पे यहाँ कुछ असर न था | शाही शायरी
balwaiyon ka jis pe yahan kuchh asar na tha

ग़ज़ल

बलवाइयों का जिस पे यहाँ कुछ असर न था

नुसरत सिद्दीक़ी

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बलवाइयों का जिस पे यहाँ कुछ असर न था
वो घर अमीर-ए-शहर का था मेरा घर न था

तहज़ीब-ओ-इल्म-ओ-फ़न की तरक़्क़ी की राह में
मेरे अलावा और कोई राहबर न था

मैं भी कहीं कहीं रहा रानाइयों से दूर
तू भी कहीं कहीं पे शरीक-ए-सफ़र न था

ताज़ा ख़बर में हम ने पढ़ा है ये दोस्तो
बारिश थी पत्थरों की मगर ज़ख़्म-ए-सर न था

समझा था रहनुमाई करेगा मिरी मगर
सूरज भी तीरगी में शरीक-ए-सफ़र न था

'नुसरत' न जाने क्यूँ उसे आया न कुछ ख़याल
हालाँकि मेरे हाल से वो बे-ख़बर न था