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बलाएँ लीजिए अब बारिशों की | शाही शायरी
balaen lijiye ab barishon ki

ग़ज़ल

बलाएँ लीजिए अब बारिशों की

नियाज़ हुसैन लखवेरा

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बलाएँ लीजिए अब बारिशों की
जिन्हों ने लाज रक्खी मौसमों की

बदन की ज़र्दियाँ मिटने लगी हैं
ज़रूरत है ग़मों की आँधियों की

अगर घटती रहीं रौशन लकीरें
सियाही फैल जाएगी शबों की

मोहब्बत कार-फ़रमा हो रही है
मिलेंगी लज़्ज़तें अब रंजिशों की

अकेली ज़ात घबराने लगी है
तलब बढ़ने लगी है साथियों की

लिबास-ए-जाँ शिकस्ता हो गया है
इनायत है क़रीबी दोस्तों की