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बला से नाम वो मेरा उछाल देता है | शाही शायरी
bala se nam wo mera uchhaal deta hai

ग़ज़ल

बला से नाम वो मेरा उछाल देता है

सरफ़राज़ नवाज़

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बला से नाम वो मेरा उछाल देता है
मगर जो ज़हर है दिल का निकाल देता है

बहुत क़रीब है मेरे बहुत क़रीब है वो
कोई किसी को यूँही कब मलाल देता है

मैं सोता रहता हूँ और जाने कब ख़ुदा मेरा
अँधेरी रात को सूरज में ढाल देता है

हम अपने ख़्वाब जो आँखों में ला के रखते हैं
इजाज़तें हमें इस की ख़याल देता है

बदन पे अपने ठहरने के एक लम्हे में
ये लम्स रूह की परतें उजाल देता है