बला से गर रहे ये ना-शुनीदा
मिरी मानो लिखो अपना क़सीदा
शब-ए-ग़म काटने वालों से पूछो
है कितनी शोख़ सुब्ह-ए-नौ-दमीदा
करोगे तुम उसे नज़्र-ए-जुनूँ क्या
क़बा-ए-ज़िंदगी ख़ुद है दरीदा
सँभलना और भी दुश्वार होगा
मुझे कहती है दुनिया बरगुज़ीदा
ग़ज़ल
बला से गर रहे ये ना-शुनीदा
शान भारती