बैठता उठता था मैं यारों के बीच
हो गया दीवार दीवारों के बीच
जानता हूँ कैसे होती है सहर
ज़िंदगी काटी है बीमारों के बीच
मेरे इस कोशिश में बाज़ू कट गए
चाहता था सुल्ह तलवारों के बीच
वो जो मेरे घर में होता था कभी
अब वो सन्नाटा है बाज़ारों के बीच
तुम ने छोड़ा तो मुझे ये ताएराँ
भर के ले जाएँगे मिंक़ारों के बीच
तुझ को भी इस का कोई एहसास है
तेरी ख़ातिर ठन गई यारों के बीच
ग़ज़ल
बैठता उठता था मैं यारों के बीच
अब्बास ताबिश