बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
हम बे-घरों का कोई ठिकाना तो है नहीं
तुम भी हो बीते वक़्त के मानिंद हू-ब-हू
तुम ने भी याद आना है आना तो है नहीं
अहद-ए-वफ़ा से किस लिए ख़ाइफ़ हो मेरी जान
कर लो कि तुम ने अहद निभाना तो है नहीं
वो जो हमें अज़ीज़ है कैसा है कौन है
क्यूँ पूछते हो हम ने बताना तो है नहीं
दुनिया हम अहल-ए-इश्क़ पे क्यूँ फेंकती है जाल
हम ने तिरे फ़रेब में आना तो है नहीं
कोशिश करें तो लौट ही आएगा एक दिन
वो आदमी है गुज़रा ज़माना तो है नहीं
वो इश्क़ तो करेगा मगर देख-भाल के
'फ़ारिस' वो तेरे जैसा दिवाना तो है नहीं
ग़ज़ल
बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
रहमान फ़ारिस