बहुत उकता गया हूँ अपने जी से
मिरा दिल भर गया है हर किसी से
ब-ज़ो'म-ए-ख़ुद अजल से मैं लड़ा हूँ
ब-ज़ो'म-ए-ख़ुद मैं हारा ज़िंदगी से
न जाने किस गली में खो गया हूँ
मैं कट कर आप अपनी ज़िंदगी से
मिरा माज़ी मिरी यादें कहाँ हैं
ये पूछूँ अब तो क्या पूछूँ किसी से
न जाने कितने उनवाँ रश्क करते
जो अपनी दास्ताँ कहते किसी से
जो आए जिस के जी में 'दर्द' कह ले
सुनूँगा हर किसी की मैं ख़ुशी से
ग़ज़ल
बहुत उकता गया हूँ अपने जी से
विश्वनाथ दर्द