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बहुत तज़्किरा दास्तानों में था | शाही शायरी
bahut tazkira dastanon mein tha

ग़ज़ल

बहुत तज़्किरा दास्तानों में था

अबरार आज़मी

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बहुत तज़्किरा दास्तानों में था
तो क्या वो कहीं आसमानों में था

मुझे देख कर कल वो हँसता रहा
तो वो भी मिरे राज़-दानों में था

वो हर शब चबाता रहा अज़दहे
सुना है कि वो नौजवानों में था

अजब चीज़ है लम्स की ताज़गी
नशा ही नशा दो जहानों में था

उसे ज़िंदगी मुख़्तसर ही मिली
मगर ख़ंदा-ए-गुल यगानों में था

वजूद उस का धरती से चिमटा रहा
ध्यान उस का ऊँची उड़ानों में था

परिंदे फ़ज़ाओं में फिर खो गए
धुआँ ही धुआँ आशियानों में था