बहुत रोया वो हम को याद कर के
हमारी ज़िंदगी बरबाद कर के
पलट कर फिर यहीं आ जाएँगे हम
वो देखे तो हमें आज़ाद कर के
रिहाई की कोई सूरत नहीं है
मगर हाँ मिन्नत-ए-सय्याद कर के
बदन मेरा छुआ था उस ने लेकिन
गया है रूह को आबाद कर के
हर आमिर तूल देना चाहता है
मुक़र्रर ज़ुल्म की मीआ'द कर के
ग़ज़ल
बहुत रोया वो हम को याद कर के
परवीन शाकिर