बहुत रौशन हम अपना नय्यर-ए-तक़दीर देखेंगे 
जब आग़ोश-ए-तसव्वुर में तिरी तस्वीर देखेंगे 
हरीम-ए-दिल के गिर्दा-गिर्द वो तनवीर देखेंगे 
जलाल-ए-मेहर-ए-अनवर को भी बे-तौक़ीर देखेंगे 
निगाह-ए-दिल से जिस दिन उस्वा-ए-शब्बीर देखेंगे 
ख़लीलुल्लाह अपने ख़्वाब की ता'बीर देखेंगे 
जुनून-ए-इश्क़ के इल्ज़ाम में ऐ ख़ुश-नवा क़ुमरी 
गले में तू ने देखा तौक़ हम ज़ंजीर देखेंगे 
अलम हो रंज हो ग़म हो बला हो शादमानी हो 
जो तू ने लिख दिया ऐ कातिब-ए-तक़दीर देखेंगे 
ख़ुदा की राह में सब कुछ लुटा कर बैठने वाले 
ख़ुदा की कुल ख़ुदाई अपनी ही जागीर देखेंगे 
मिरा आमाल-नामे धुल गया अश्क-ए-नदामत से 
फ़रिश्ते क्या करेंगे कुछ न जब तहरीर देखेंगे 
सितम-गारों को मिल जाएगा अपने ज़ुल्म का बदला 
कभी आह-ए-ग़रीबाँ को न बे-तासीर देखेंगे 
मोहब्बत ही बिना ऐ 'बर्क़' है तख़्लीक़ आलम की 
मोहब्बत ही को हर आलम में आलम-गीर देखेंगे
        ग़ज़ल
बहुत रौशन हम अपना नय्यर-ए-तक़दीर देखेंगे
रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

