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बहुत रौशन है शाम-ए-ग़म हमारी | शाही शायरी
bahut raushan hai sham-e-gham hamari

ग़ज़ल

बहुत रौशन है शाम-ए-ग़म हमारी

हबीब जालिब

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बहुत रौशन है शाम-ए-ग़म हमारी
किसी की याद है हमदम हमारी

ग़लत है ला-तअल्लुक़ हैं चमन से
तुम्हारे फूल और शबनम हमारी

ये पलकों पर नए आँसू नहीं हैं
अज़ल से आँख है पुर-नम हमारी

हर इक लब पर तबस्सुम देखने की
तमन्ना कब हुई है कम हमारी

कही है हम ने ख़ुद से भी बहुत कम
न पूछो दास्तान-ए-ग़म हमारी