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बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना | शाही शायरी
bahut mushkil tha mujhko rah ka hamwar kar dena

ग़ज़ल

बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना

तालीफ़ हैदर

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बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना
तो मैं ने तय किया इस दश्त को दीवार कर देना

तो क्यूँ इस बार उस ने मेरे आगे सर झुकाया है
उसे तो आज भी मुश्किल न था इंकार कर देना

फिर आख़िरकार ये साबित हुआ मंज़ूर था तुझ को
हमारे अरसा-ए-हस्ती को बस बेकार कर देना

उसे है रोज़ पानी की तरह मेरी तरफ़ आना
और अपने जिस्म को कुछ और आतिश-बार कर देना

वो उस का रात भर तामीर करना मुझ को मुश्किल से
मगर फिर सुब्ह से पहले मुझे मिस्मार कर देना