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बहुत मुश्किल है दरिया पार जाना | शाही शायरी
bahut mushkil hai dariya par jaana

ग़ज़ल

बहुत मुश्किल है दरिया पार जाना

ख़ालिद यूसुफ़

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बहुत मुश्किल है दरिया पार जाना
मगर है कुफ़्र हिम्मत हार जाना

बहुत मुमकिन है क़िस्मत मुंतज़िर हो
तो फिर ख़्वाबों में भी बेदार जाना

न जाना हल्क़ा-ए-ज़ुल्मत में चाहे
पड़े मक़्तल पस-ए-दीवार जाना

ये कह कर वो चला सू-ए-शहादत
ख़ुदा के पास क्या बीमार जाना

अमीर-ए-शहर का हुस्न-ए-तदब्बुर
रक़ीबों को भी अपना यार जाना

मुक़द्दर था जो बच आए सलामत
दिल-ए-इंकार को इक़रार जाना

तमन्ना जीत की हो ज़िंदगी में
तो हर महफ़िल में ले कर हार जाना

अगर मुंसिफ़ बना वो ख़ुद न होगा
ये राज़ उस ने सर-ए-दरबार जाना

ये पैहम मुफ़लिसी जिन का करम है
उन्हीं को हम ने पालनहार जाना

लब-ओ-रुख़्सार पर ताले पड़े हैं
तो क्या 'ख़ालिद' पए दीदार जाना