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बहुत मज़ा था उड़ान में भी | शाही शायरी
bahut maza tha uDan mein bhi

ग़ज़ल

बहुत मज़ा था उड़ान में भी

लुत्फ़ुर्रहमान

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बहुत मज़ा था उड़ान में भी
यक़ीं था रौशन गुमान में भी

हसीन शब पर है चाँद मेरा
दया जला आसमान में भी

वही अकेला है अंजुमन में
वही है तन्हा मकान में भी

चटान में भी रवाँ है दरिया
छपा है दरिया चटान में भी

हुए थे बाज़ू भी शल हमारे
हुआ न थी बादबान में भी

वही था आग़ाज़-ओ-इंतिहा भी
वही रहा दरमियान में भी

चढ़ा न था तीर भी नज़र का
लचक न थी कुछ कमान में भी