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बहुत ख़ूबियाँ हैं हवस-कार दिल में | शाही शायरी
bahut KHubiyan hain hawas-kar dil mein

ग़ज़ल

बहुत ख़ूबियाँ हैं हवस-कार दिल में

रउफ़ रज़ा

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बहुत ख़ूबियाँ हैं हवस-कार दिल में
नया शोर मचता है हर बार दिल में

बदन को कसो और बस मुस्कुरा दो
उतर जाओ अब आख़िरी बार दिल में

अभी मेरे चेहरे की रंगत अलग थी
अभी हो रही है धुआँ-दार दिल में

नए चाँद पर अब के सदक़ा करेंगे
सलामत रहें सब गुल ओ ख़ार दिल में

हमें रिज़्क़ की कुछ ज़रूरत पड़ेगी
दुआ पक रही है गुनहगार दिल में

अज़ानें हुईं सुब्ह रौशन हुई है
चलो चल के सोएँ इसी यार दिल में

मैं जैसे ही उस की गली को मुड़ा हूँ
न दिल जेब में है न दिलदार दिल में

ज़मीं की चटाई वो पत्थर का तकिया
ख़रीदार दिल में न बाज़ार दिल में

महकता सुबुक सा उड़ा जा रहा हूँ
जुटा ही लिए सारे अग़्यार दिल में

इसे कुछ न होने का कितना यक़ीं है
छुपा कर रखो ये कला-कार दिल में

'रज़ा' आज़माया हुआ है पुराना
चलो यार घर को चलो यार दिल में