EN اردو
बहुत ख़ुश थे साहिल क़रीब आ गया | शाही शायरी
bahut KHush the sahil qarib aa gaya

ग़ज़ल

बहुत ख़ुश थे साहिल क़रीब आ गया

जैमिनी सरशार

;

बहुत ख़ुश थे साहिल क़रीब आ गया
सफ़ीना किनारे से टकरा गया

है बेहद ख़तरनाक बहर-ए-जहाँ
जो इंसान भी इस में डूबा गया

तिरे डर से छुप-छुप के पीते थे हम
गया शैख़ अब वो ज़माना गया

मुझे ज़िंदगी की दुआएँ न दो
मैं ऐसी दुआओं से उकता गया

न समझो किसी की किसी बात को
तुम्हें कौन ये बात समझा गया

वफ़ाएँ नहीं वो जफ़ाएँ नहीं
निज़ाम-ए-जहाँ कुछ बदल सा गया

ये छुप छुप के मिलना भी है इक अज़ाब
कोई आ गया वो कोई आ गया

यहाँ थे तो 'सरशार' क्या कुछ न थे
गए वो तो ख़त भी न भेजा गया