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बहुत जी तरसता रहा रात भर | शाही शायरी
bahut ji tarasta raha raat bhar

ग़ज़ल

बहुत जी तरसता रहा रात भर

सफ़दर मीर

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बहुत जी तरसता रहा रात भर
जो हम से भी मिल लो मुलाक़ात भर

बिसात-ए-तमन्ना उलटते हो क्यूँ
कि बाज़ी ये खेलेंगे हम रात भर

है आँखों में तूफ़ाँ ब-क़द्र-ए-जुनूँ
है दिल में तमन्ना ख़राबात भर

नहीं माँगते मस्ती-ए-जावेदाँ
हमें चाहिए मय मुदारात भर

ज़रा देख लो मेरे दिल की तरफ़
ये छल-बल वदीअत नहीं रात भर

घर आई उमँड कर घटा चार ओर
खुलेगी तबीअत न बरसात भर