EN اردو
बहुत दुश्वार है अब आईने से गुफ़्तुगू करना | शाही शायरी
bahut dushwar hai ab aaine se guftugu karna

ग़ज़ल

बहुत दुश्वार है अब आईने से गुफ़्तुगू करना

राग़िब अख़्तर

;

बहुत दुश्वार है अब आईने से गुफ़्तुगू करना
सज़ा से कम नहीं है ख़ुद को अपने रू-ब-रू करना

अजब सीमाबियत है इन दिनों अपनी तबीअत में
कि जिस ने बात की हँस कर उसी की आरज़ू करना

इबादत के लिए ततहीर-ए-दिल की भी ज़रूरत है
वज़ू के बाद फिर अश्क-ए-नदामत से वज़ू करना

ये वस्फ़-ए-ख़ास है कुछ आप से बा-वस्फ़ लोगों का
हमें आता नहीं है आप को लम्हे में तू करना

तिरी फ़ितरत में यूँ मुसबत इशारे ढूँडता हूँ मैं
किसी सहरा को जैसे चाहता हूँ आबजू करना