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बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता | शाही शायरी
bahut din tak koi chehra mujhe achchha nahin lagta

ग़ज़ल

बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता

हाशिम रज़ा जलालपुरी

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बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता
मता-ए-दीद पे क़ब्ज़ा मुझे अच्छा नहीं लगता

कनीज़ों पे भी आ सकता है दिल ज़िल्ल-ए-इलाही का
निज़ाम-ए-इश्क़ में शजरा मुझे अच्छा नहीं लगता

मैं कुछ भी सोच सकता हूँ मैं कुछ भी देख सकता हूँ
ख़याल-ओ-ख़्वाब पे पहरा मुझे अच्छा नहीं लगता

न खिड़की है न आँगन है न रोशन-दान है कोई
इमारत-साज़ ये नक़्शा मुझे अच्छा नहीं लगता

जो होती हाथ में मेरे तो दुनिया बाँट देता मैं
किसी के हाथ में कासा मुझे अच्छा नहीं लगता