बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं था
बदन इतना कभी सूना नहीं था
वो कैसी शब थी जो काली नहीं थी
वो कैसा दिन था जो उजला नहीं था
ये वीराना न था वीरान इतना
ये सहरा इस क़दर सहरा नहीं था
वो सब कुछ सोचना अब पड़ रहा है
तिरे बारे में जो सोचा नहीं था
किसी इक ज़ख़्म के लब खुल गए थे
मैं इतनी ज़ोर से चीख़ा नहीं था
मुझे तुम से कोई शिकवा नहीं है
बहुत दिन हो गए रोया नहीं था
कई अतराफ़ खुलते जा रहे हैं
वो दुश्मन था मगर इतना नहीं था
ग़ज़ल
बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं था
अतीक़ुल्लाह