बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं
कुछ ख़्वाब मिरे ऐन-जवानी में मरे हैं
रोता हूँ मैं उन लफ़्ज़ों की क़ब्रों पे कई बार
जो लफ़्ज़ मिरी शोला-बयानी में मरे हैं
कुछ तुझ से ये दूरी भी मुझे मार गई है
कुछ जज़्बे मिरे नक़्ल-ए-मकानी में मरे हैं
क़ब्रों में नहीं हम को किताबों में उतारो
हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरे हैं
इस इश्क़ ने आख़िर हमें बरबाद किया है
हम लोग इसी खौलते पानी में मरे हैं
कुछ हद से ज़ियादा था हमें शौक़-ए-मोहब्बत
और हम ही मोहब्बत की गिरानी में मरे हैं
ग़ज़ल
बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं
एजाज तवक्कल