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बहते पानी में जो सूरत ठहरे | शाही शायरी
bahte pani mein jo surat Thahre

ग़ज़ल

बहते पानी में जो सूरत ठहरे

इसहाक़ अतहर सिद्दीक़ी

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बहते पानी में जो सूरत ठहरे
मेरे होने की ज़मानत ठहरे

उस के जल्वे से मिली हैं नज़रें
अब कहाँ पर मिरी क़िस्मत ठहरे

ख़ुद को आईना-सिफ़त देखता हूँ
मुझ में कुछ देर तो क़ुदरत ठहरे

तेज़-रफ़्तारी-ए-दुनिया क्या है
मैं भी सोचूँ जो ये हालत ठहरे

कोई तो कार-ए-जहाँ हम-नफ़सो
जो मिरे वक़्त की क़ीमत ठहरे